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माणिक्य के भी वर्ण विभेद होते हंै । ब्राह्राण वर्ण - गुलाब के पुष्प के जैसे रंग का होता है । क्षत्रिय वर्ण - रक्त वर्ण अर्थात लाल कमल के रंग के समान होता है । वैष्य वर्ण - वह माणिक्य होता है जिसमें लाली नीलापन और मलिनता लिये हुए होती है ।

चिकने , साफ , अच्छे रंग और अच्छे धार के पानीदार और चमकीले माणिक्य को धारण करने से वंश - वृद्धि , सुख - सम्पतित की प्रापित , अन्न , धन , रत्नादि का संग्रह होता है । यह भय व्याधि और दु:खादि को दूर करता हैं । इसके धारण करने से धारणकर्ता आत्मबली , भाग्यवान , प्रतिषिठत , धैर्यवान , वीर्यवान और निर्भय बनता है । उसमें सूर्य के समान तेजसिवता आती है और उसके शरीर में कानित की वृद्धि होती है ।

दोषी माणिक्य धारण करने से अनेकों प्रकार के कष्ट भोगने हैं । सुन्न माणिक्य धारण करने से भार्इ को दु:ख होता है । दूधक रत्न पशु - नाश करता है । दुरंगा रत्न पिता को तथा स्वंय को दु:ख देता है । लाल चिहन वाला रत्न कलह कराता है । धूम्र वर्ण माणिक्य से अचानक विधुत ताप का भय रहता है । चार चिन्ह वाला रत्न हो तो शस्त्र से आधात का भय होता है । मटैला हो तो उदर - विकार देता है और पुत्रोत्पतित में बाधा डालता है । यदि रत्न में सफेद , काले या मधु के छींटे हों तो अपयश मिलता है और आयु , धन तथा सुख में अल्पता आती है । रत्न आदि गडढे वाला हो तो शरीर को दुर्बल करता है । बहुत दोष वाला और दुर्गणी माणिक्य मृत्यु कारक बन जाता है ।

ऐसी भी मान्यता है कि जब माणिक्य धारण करने वाले पर कोर्इ विपतित आने वाली है तो उसका रंग हल्का पड़ जाता है , और कष्ट दूर हो जाने पर पुन: अपने मौलिक रंग पर आ जाता है । विष के निकट लाने पर माणिक्य का रंग फीका पड़ जाता है साँ के विष का प्रभाव धारणकर्ता पर नहीं होता ।

माणिक्य सूर्य का रत्न माना जाता है ।
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